पंचांग कैसे देखे Panchang kaise dekhe
पंचांग कैसे देखें Panchang kaise dekhe
पंचांग का अर्थ है पांच अंग
1. तिथी
2. नक्षत्र
3. योग
4. करण
5. वार।
पंचांग में तिथि की समाप्ति दियी जाती है। पहली तिथी की समाप्ति दूसरी तिथी की शुरुआत होती है। पंचांग में, सूर्योदय की तिथी दी जाती है, अर्थात सूर्योदय होते वक्त वो तिथि रहती है।
श्रीपाद श्रीवल्लभ सिद्ध मंगल स्तोत्र
तीथि क्षय क्या है?
एक तिथि जो किसी भी सूर्योदय के समय नहीं होती है उसे क्षय तिथि कहा जाता है। मान लीजिए कि तृतीया सोमवार को सुबह 08 बजे शुरू होती है और मंगलवार को सुबह 06 बजे समाप्त होती है। सोमवार को सूर्योदय सुबह 06.30 बजे और मंगलवार को सुबह 06.31 बजे होता है । तृतीया तिथि सोमवार को सूर्योदय के बाद शुरू होती है और मंगलवार को सूर्योदय से पहले समाप्त होती है, जिसका अर्थ है कि तृतीया तिथि दोनों दिन सूर्योदय के समय नहीं है, इसलिए यह कहा जाता है कि तृतीया तिथि क्षय हो गई है। दूसरी ओर, यदि वही तृतीया सोमवार को प्रातः 06 बजे शुरू होती है और मंगलवार को प्रातः 07 बजे समाप्त होती है, तो कहा जाता है कि तृतीया तिथि की वृद्धि हो गयी है क्योंकि यह सोमवार और मंगलवार दोनों दिन सूर्योदय को है। पंचांग में, क्षय तिथि सूर्योदय की तिथि के नीचे दी जाती है और वृद्धि की तिथि पहले दिन अहोरात्र के रूप में और दूसरे दिन समाप्ति देकर दी जाती है।
नक्षत्र क्या है
नक्षत्र 27 हैं। जिस नक्षत्र मे चंद्रमा होता है वो हमारा जन्म नक्षत्र कहलाता है। मान लीजिए कि आपके जन्म के समय चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में है, तो आपका जन्म नक्षत्र रोहिणी होगा। पंचांग में नक्षत्र का अंत समय दिया होता है। एक राशि मे सव्वादो नक्षत्र होते हैं, यानी दो नक्षत्र पूरे होते हैं और एक नक्षत्र का एक चौथाई। कुछ राशियों में दो पूर्ण नक्षत्र होते हैं और तीसरे नक्षत्र का पहला भाग। कुछ राशियों में एक नक्षत्र का अंतिम भाग होता है, दूसरा नक्षत्र पूर्ण और तीसरे नक्षत्र के पहले दो भाग होते हैं, जबकि कुछ राशियों में एक नक्षत्र के अंतिम दो भाग होते हैं, एक पूर्ण नक्षत्र और तीसरे नक्षत्र के पहले तीन भाग। कुछ राशियों में एक नक्षत्र का चौथा भाग, दूसरा पूर्ण और तीसरा नक्षत्र पूर्ण होता है। एक राशि में कुल नौ भाग होते हैं। नक्षत्र के कुल चार भाग होते हैं। उसे चरण कहा जाता है। प्रत्येक चरण में एक जन्माक्षर होता है, जो हमारा जन्म नाम है। जिस नक्षत्र के जिस भाग मे आपका जन्म हुआ है, वह आपका जन्म अंक है और इसका नाम आपका जन्म नाम है। जैसे रोहिणी नक्षत्र के चार चरण होते हैं। पहला चरण 'ओ', दूसरा चरण 'वा', तीसरा चरण 'वी' और चौथा चरण 'वू' है।
मेष --- अश्विनी पूरा, भरणी पूरा, कृतिका प्रथम चरण
वृषभ- कृतिका अंतिम तीन चरण, रोहिणी पूरा, मृगशिरा प्रथम दो चरण
मिथुन - मृगशीरा के अंतिम दो चरण, आद्रा पूरा, पुनर्वसु प्रथम तीन चरण
कर्क - पुनर्वसु चौथा चरण, पुष्य पूरा, अश्लेषा पूरा
सिंह- मघा पूरा, पूर्वा फाल्गुनी पूरा, उत्तरा फाल्गुनी प्रथम चरण
कन्या - उत्तरा फाल्गुनी अंतिम तीन चरण, हस्त पूरा, चित्रा पहले दो चरण
तुला राशी - चित्रा पिछले दो चरण, स्वाति पूरा, विशाखा पहले तीन चरण
वृश्चिक - विशाखा चौथा चरण, अनुराधा पूरा, ज्येष्ठा पूरा
धनु- मूल पूरा, पूर्वाषाढ़ा पूरा, उत्तराषाढ़ा प्रथम चरण
मकर - उत्तराषाढ़ा चतुर्थ चरण, श्रवण पूरा, धनु प्रथम दो चरण
कुम्भ - धनिष्ठा अंतिम दो चरण, शततारा पूरा, पूर्वा भाद्रपद प्रथम तीन चरण
मीन - पूर्वा भाद्रपद चौथा चरण, उत्तरा भाद्रपद पूरा, रेवती पूरा नक्षत्र
वृषभ- कृतिका अंतिम तीन चरण, रोहिणी पूरा, मृगशिरा प्रथम दो चरण
मिथुन - मृगशीरा के अंतिम दो चरण, आद्रा पूरा, पुनर्वसु प्रथम तीन चरण
कर्क - पुनर्वसु चौथा चरण, पुष्य पूरा, अश्लेषा पूरा
सिंह- मघा पूरा, पूर्वा फाल्गुनी पूरा, उत्तरा फाल्गुनी प्रथम चरण
कन्या - उत्तरा फाल्गुनी अंतिम तीन चरण, हस्त पूरा, चित्रा पहले दो चरण
तुला राशी - चित्रा पिछले दो चरण, स्वाति पूरा, विशाखा पहले तीन चरण
वृश्चिक - विशाखा चौथा चरण, अनुराधा पूरा, ज्येष्ठा पूरा
धनु- मूल पूरा, पूर्वाषाढ़ा पूरा, उत्तराषाढ़ा प्रथम चरण
मकर - उत्तराषाढ़ा चतुर्थ चरण, श्रवण पूरा, धनु प्रथम दो चरण
कुम्भ - धनिष्ठा अंतिम दो चरण, शततारा पूरा, पूर्वा भाद्रपद प्रथम तीन चरण
मीन - पूर्वा भाद्रपद चौथा चरण, उत्तरा भाद्रपद पूरा, रेवती पूरा नक्षत्र
योग क्या है
योग चंद्रमा और सूरज के भोग के जोड को योग कहते है। यदि चंद्रमा और सूरज दोनो के भोगकी बेरीज 800 कला होती है , तब एक योग पूरा होता है। सूर्य प्रति दिन लगभग 59 कला चलता है और चंद्रमा लगभग 790 कला प्रति दिन चलता है। यदि दोनों द्वारा की गई कुल दूरी 800 कला है, तो एक योग पूरा हो जाता है। ऐसे सत्ताईस योग हैं। पहला योग विष्कंभ है। योग का अंत समय पंचांग में दिया होता है। नक्षत्र और योग की वृद्धि और क्षय होती है उसका उदाहरण तिथी मे दिया गया है। अच्छे कार्यों के लिए वैधृति और व्यतिपात को बुरा माना जाता है। यदि आप इस योग में पैदा हुए हैं, तो आपको शांति करानी होगी। ये योग और अमृतसिद्धी योग अलग हैं। अमृतसिद्धि योग वार और नक्षत्र से बनते है ।
1. रविवार + हस्त नक्षत्र
2. सोमवार + मृगशीरा नक्षत्र
3. मंगलवार + अश्विनी नक्षत्र
4. बुधवार + अनुराधा नक्षत्र
5. गुरुवार + पुष्य नक्षत्र
6. शुक्रवार + रेवती नक्षत्र
7. शनिवार + रोहिणी नक्षत्र
2. सोमवार + मृगशीरा नक्षत्र
3. मंगलवार + अश्विनी नक्षत्र
4. बुधवार + अनुराधा नक्षत्र
5. गुरुवार + पुष्य नक्षत्र
6. शुक्रवार + रेवती नक्षत्र
7. शनिवार + रोहिणी नक्षत्र
यदि रविवार को हस्त नक्षत्र हो, तो जब तक हस्त नक्षत्र होता है, तब तक अमृतसिद्धि योग होता है। अमृतसिद्धि योग सभी कार्यों के लिए शुभ है। तीन कार्यों के लिए तीन वर्जित अमृतसिद्धि योग हैं। यदि अश्विनी नक्षत्र मंगलवार को है, तो उस दिन ग्रहप्रवेश नही किया जाता । यदि गुरुवार को पुष्य नक्षत्र हो, तो विवाह और विवाह की बातचीत से बचना चाहिए। यदि शनिवार को रोहिणी नक्षत्र हो, तो यात्रा से बचना चाहिए। शास्त्र कहते हैं कि इस दिन लंबी यात्रा शुरू नहीं करनी चाहिए।
करण क्या है
करण का अर्थ है तिथि का आधा भाग, पहला करण पहले आधे भाग मे होता है और दूसरा करण तिथि के दूसरे आधे भाग में होता है। कुल मिलाकर ग्यारह करण हैं। शकुनि, चतुष्पाद, नाग, किंस्तुघ्न ये चार करण स्थिर है । शकुनी कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी का दूसरा करण है। चतुष्पाद और नाग क्रमशः अमावस्या के पहले और दूसरे करण हैं। किंस्तुघ्न प्रतिपदा का पहला करण है, इसे स्थिर करण कहा जाता है। अन्य सात फिरसे एक के बाद एक आते है इसलिए उन्हे चर करण कहते हैं। विष्टि को भद्रा कहा जाता है और सभी अच्छे कार्यों के लिए इसे बुरा माना जाता है। यदि आप इस करण पर जन्म लेते हैं, अर्थात, भद्रा पर, तो आपको शांति करानी होगी। शकुनि, चतुष्पाद, नाग भी बुरे माने जाते हैं। चतुष्पाद और नाग अमावस्या को हैं जबकि शकुनि शिवरात्रि को हैं। वैधृति और व्यतिपात योग , भद्रा करण, अमावस्या तीथि और करिदिन ये सभी अच्छे कर्मो को लिए अशुभ माने जाते हैं , जैसे विवाह, मुंज, गृह प्रवेश, नए कार्य की शुरुआत आदि।
करिदिन क्या है
करिदिन वह दिन है जिस दिन पंचांग मे करिदिन लिखा होता है। करिदिन सात हैं।
1. भावुका अमावस्या का दूसरा दिन
2. दक्षिणायनारम्भ का दूसरा दिन
3. उत्तरायण का दूसरा दिन
4. चंद्र और सूर्य ग्रहण का दूसरा दिन
5. कर्क संक्रांति का दूसरा दिन
6. मकर संक्रांति का दूसरा दिन
7. होली का दूसरा दिन
1. भावुका अमावस्या का दूसरा दिन
2. दक्षिणायनारम्भ का दूसरा दिन
3. उत्तरायण का दूसरा दिन
4. चंद्र और सूर्य ग्रहण का दूसरा दिन
5. कर्क संक्रांति का दूसरा दिन
6. मकर संक्रांति का दूसरा दिन
7. होली का दूसरा दिन
वार एक सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक होता है, रात के बारह बजे तारीख बदल जाती है, वार सूर्योदय को बदलता है। बहुत से लोग उपवास करते हैं, वे सोचते हैं कि आधी रात को उनका उपवास खत्म हो जाता है लेकिन ऐसा नहीं होता है।
दिनमान पंचांग में दिया जाता है, दिनमान सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय होता है। रात्रिमान का समय सूर्यास्त से अगले सूर्योदय तक है। उत्तरायण और दक्षिणायन पंचांग में दिए जाते हैं। उत्तरायण 21 दिसंबर से शुरू होता है और दक्षिणायन 21 जून से शुरू होता है। अयन का मतलब है जाना। उत्तर और दक्षिण में सूर्य के जाने को क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है। जब सूर्य उत्तरायण में उगता है, तो उत्तर की ओर दिखता है, जबकि दक्षिणायन में यह दक्षिण की ओर दिखता है। मुस्लिम महीने को पंचांग में दिया जाता है। उसके बाद चंद्र राशि दी जाती है और उसके बाद त्योहारों की जानकारी दी जाती है।
शालिवाहन शके क्या है
शालिवाहन राजा द्वारा शालिवाहन शके की शुरुआत हुई है । वर्तमान में शालिवाहन शके सन 2020 को शके 1942 है। शालिवाहन शके को कैसे निकाले ? ईसवीसन से 78 वर्ष की कटौती के बाद, शालिवाहन शक उस वर्ष के गुडीपडवा से शुरू होता है। उदाहरण के लिए, 2020 - 78 = 1942, 2020 सन के आने वाले गुडीपडवा के नए साल को शालिवाहन शके 1942 है। विक्रम संवत राजा विक्रमादित्य द्वारा शुरू किया गया है। वर्तमान में यह वर्ष 2020 में संवत 2076 है। यह दिवाली पडवा से शुरू होता है, जिसका अर्थ है कि यदि आप ई सन् में 57 मिलाते है , तो अगली दिवाली पडवा मे विक्रम संवत 2077 होगा । जैसे 2020 + 57 = 2077 दीवाली 2020 के पडवे पर आएगा। संवत्सर पंचांग में दिया होता है। ये 60 हैं। शालिवाहन शके 1942 को शार्वरीनाम संवत्सर है। फिर ऋतुए दिये होते है। दो प्रकार के ऋतुए होते हैं, चंद्र और सौर। चंद्र ऋतुएँ 6 हैं और सौर ऋतुएँ 6 हैं।
फिर पंचांग में विशेष दिनों, त्यौहारों, संकष्टी चतुर्थी, एकादशी, दुर्गाष्टमी, कालाष्टमी, विनायक चतुर्थी, रविराशी, रविनक्षत्र के बारे में जानकारी होती है। बरसात के कुल 9 नक्षत्र हैं। वर्तमान में पंचांग में मृग से स्वाति तक कुल 11 नक्षत्र दिए होते हैं। जिन नक्षत्रों में सूर्य और चंद्रमा स्थित होते हैं उनसे उनके वाहन जैसे भेड़, भैंस, चूहे का निर्धारण करते हैं। पंचांग में दैनिक ग्रह सुबह 05.30 बजे के दिए जाते हैं। लग्न सारणी एक विशेष गांव की होती है। उसमे लग्न का अंतिम समय दिया जाता है। लग्न का समय देखने के लिए आपको उसमे कुछ बदलाव करने की जरूरत है। लग्न क्या है? अगर हम पूर्व की ओर देखें तो उस समय जो राशी उदय हो रही है, उसे लग्न कहते है । मान लीजिए कि किसी व्यक्ति का जन्म सुबह 8 बजे हुआ है, तो सुबह 8 बजे, उस व्यक्ति के जन्म स्थान पर जो राशी पूरब मे उदय होती है, वह उस व्यक्ति का जन्म लग्न होता है। कुल 12 राशियाँ हैं, जैसे मेष, वृष, कर्क आदि।
जिन लोगों को पंचांग के बारे में कुछ भी नहीं पता है, उनके लिए इसमें जानकारी दी गई है। बहुत से लोगों के पास घर पर एक पंचांग होता है, लेकिन उसे देखने का तरीका नहीं जानते, यह लेख उनके लिए बहुत उपयोगी होगा। छोटी-छोटी बातों के लिए ज्योतिषियों या गुरुओं के पास जाने की जरूरत नहीं है। अगले लेख में, अवकहडा चक्र, गुणमेलन कैसे करे, पत्रिका में मंगल के बारे में जानकारी, जन्म नाम कैसे देखें आदि विषय पर जानकारी मिल जाएगी।
धन्यवाद !
साई भक्त संजय देशपांडे
Nice information
जवाब देंहटाएंNice information
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा सटीक वर्णन
जवाब देंहटाएं25,05,1987
जवाब देंहटाएंBahut sundar hai
जवाब देंहटाएंV nice
जवाब देंहटाएंThanks ji
जवाब देंहटाएंईस जानकारी के लिए आपका दिल से धन्यवाद,बहुत अच्छा लगा पढ कर
जवाब देंहटाएंBahut achhi jankari mili iske liye bahut bahut dhanyavad
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी है जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी है जी
जवाब देंहटाएंअत्ति उत्तम जानकारी मिली इस लेख के द्वारा देशपांडे जी आपका हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंपंचांग के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त हुआ । आप को बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं